Mythological Era: Ancient History of Chhattisgarh
पौराणिक युग श्री प्यारेलाल गुप्त जी के शब्दों में प्राचीन कथा के अनुसार ” रतनपुर छत्तीसगढ़ के चारों युग की प्राचीन राजधानी थी। सतयुग में इसका नाम मणिपुर था, त्रेता में यह मणिकपुर कहलाया, द्वापर में इसका नाम हीरापुर बदल गया और अब कलयुग में यह रतनपुर नाम से प्रसिद्ध है। पौराणिक युग में गंगा से गोदावरी तक लंबे चौड़े भू-भाग में छत्तीसगढ़ भी शामिल था। उस काल खंड में यह क्षेत्र दण्डकारण्य के नाम से पुकार जाता था। यहाँ रहने -बसने वाले अनार्यो का उल्लेख हर्ष चरित, कांदबरी, ऐतरेयोपनिषद और महाभारत कालीन स्त्रोतों में दस्यु के नाम से किया गया है। वैदिक सभ्यता के उत्तरार्द्ध में दक्षिण कोसल में आर्यो का आगमन हो चुका था। श्री रामचंद्रजी का दक्षिण पार कर लंका पर विजय प्राप्त करने का वर्णन स्पष्टतः दक्षिण में आर्यों के प्रवेश का संकेत करता है। दक्षिण की ओर आर्यो के बढ़ने का समय लगभग 800 ई पूर्व माना जाता है। छत्तीसगढ़ में रामायणयुगीन एवं महाभारत से संबंधित अनेकों पौराणिक एवं जनश्रुति अनुरूप कथाएँ विद्यमान है। दण्डकारण्य में भगवान श्रीराम के लोकोद्वार संबंधी कार्यों की नींव पड़ी। महाभारत कालीन नरेशों का इस क्षेत्र से संबंध भी बताया गया है। यथा – शिशुपाल, बभ्रुवाहन, मोरध्वज इत्यादि । राजा रूक्म की राजधानी गोदावरी तट पर स्थित प्रतिष्ठानपुर (पैठन) में थी।
चेदि देश के राजा बभ्रुवाहन की राजधानी चित्रांगदपुर कालान्तर में सिंरपुर (श्रीपुर) थी। रायपुर के आरंग तथा बिलासपुर के रतनपुर के साथ राजा मोरध्वज का संबंध जोड़ा जाता है। महाभारत के भीमसेन के नाम पर बिलासपुर जिलांतर्गत जांजगीर में एक विशाल “भीम्मा” तालाब अद्यावधि प्रमाण स्वरूप है जो संभवतः “भीम्मा” का ही अपभ्रंश हो सकता है। रायपुर जिला का भीमखोज भी इसका उदाहरण है। अतः यह कहा जा सकता है कि वैदिक युगीन छत्तीसगढ़ में आर्यों एवं अनार्यो की समन्वित संस्कृति विद्यमान थी। वस्तुतः आदि मानव से लेकर जो कि शैलचित्रों में अपनी अभिव्यक्ति करता था, 12 वीं शताब्दी के मध्य में ताम्रपत्रों के माध्यम से शासनादेश प्रसारित करने वाले शासकों तक जो अभिलेखीय एवं अन्य पुरातात्विक साक्ष्य प्राप्त हुए है, उसके अनुसार या दक्षिण कोसल में महाजनपद युग से लेकर कलचुरिकालीन शासकों तक मौर्य वंश, शुगवंश सातवाहन वंश, गुप्त वंश राजर्षितुल्य कुलवंश, शरभपुरीय वंश, नलवंश, पाण्डुवंश, छिंदक नागवंश, नागवंश, सोमवंश तथा कलचुरि वंश प्रमुख है। छत्तीसगढ़ के ईसा पूर्व के इतिहास को क्रमानुसार विभाजित करने का कार्य प्राप्त मुद्राओं एवं मूर्तियों के आधार पर पं.लोचन प्रसाद पाण्डेय ने किया था उनके अनुसार भांद्य और महानदी के तट पर प्राप्त ब्राह्मी लिपि की मुद्रायें पूर्व बौद्धकाल जैतपुर और मल्लार में प्राप्त कुटिल लिपि अंकित मूर्तियाँ उत्तर बौद्ध काल की है। ईसा पूर्व 6000 के लगभग यह भाग अवन्ती महाजनपद में संभवतः सम्मिलित था और कुछ उत्तरीय भाग चेदि महाजनपद के अंन्तर्गत भी था।
नंदवंश के राज्यकाल में भी उनके राज्यांतर्गत था। जब नंदवंश का पतन प्रसिद्ध ब्राह्मण चाणक्य की नीति द्वारा हुआ तब मौर्य वंशी चंद्र गुप्त राजा सिंहासनारूढ़ हुआ।
बहुविकल्पीय अभ्यास प्रश्न (MCQs Practice Questions)
Q) चितवा डोंगरी गुफाएं किस जिले में स्थित हैं ? [CGPSC ARTO 2017]
(A) कांकेर
(B) गरियाबंद
(C) राजनांदगांव
(D) कवर्धा
उत्तर-(C) राजनांदगांव (वर्तमान में चितबा डोंगरी की गुफाएं बालोद के डोण्डी तहसील में स्थित है।)
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