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ES-08 वानिकी : छत्तीसगढ़ आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 | CG Forestry [ Notes, PDF, MCQs ]


Chapter 8 : Forestry [CG Economic Survey 2024-25]

मुख्य बिन्दु

  • राज्य में आरक्षित वन 25,910.23 वर्ग कि.मी. (43.31 प्रतिशत), संरक्षित वन 24,036.10 वर्ग कि.मी. (40.18 प्रतिशत) व अवर्गीकृत वन 9,874.13 वर्ग कि.मी. (16.61 प्रतिशत) वन क्षेत्र है तथा कुल 59,820.78 वर्ग कि.मी. वनक्षेत्र है।
  • सकल राज्य घरेलू उत्पाद में वानिकी क्षेत्र की भागीदारी वर्ष 2023-24 (Q) में 8,71,183 लाख रू. तथा 2024-25 (अग्रिम) 9,05,725 लाख रू. है।
  • सकल घरेलू उत्पाद में वानिकी का प्रतिशत हिस्सा 2023-24 (Q) में 1.55 प्रतिशत व 2024-25 (अग्रिम) में 3.04 प्रतिशत है।
  • खदानी रोपण योजनांतर्गत वर्षा ऋतु वर्ष 2024 में 15.47 लाख पौधों का रोपण किया गया है।
  • वर्ष 2023-24 में 674.16 करोड़ रू. मूल्य के 12.94 लाख मानक बोरा तथा वर्ष 2024-25 में 1073.48 करोड़ रू. मूल्य के 15.56 लाख मानक बोरा तेंदूपत्ता का उत्पादन हुआ है।

8.1 छत्तीसगढ़ राज्य का भौगोलिक क्षेत्रफल 1,35,191 वर्ग किलोमीटर है, जो कि देश के क्षेत्रफल का 4.1 प्रतिशत है। प्रदेश का वन क्षेत्रफल लगभग 59,820.78 वर्ग किलोमीटर है, जो कि प्रदेश के भौगोलिक क्षेत्रफल का 44.25 प्रतिशत है। छत्तीसगढ़ राज्य वन क्षेत्रफल की दृष्टि से देश में चौथे स्थान पर है। राज्य के वन आवरण की दृष्टि से छत्तीसगढ़ का देश में तीसरा स्थान है।

8.2 पारंपरिक राष्ट्रीय लेखा के मामले में सकल राज्य घरेलू उत्पाद में वन क्षेत्र का योगदान महत्वपूर्ण परिलक्षित होता है जो तालिका 8.2 में दर्शाया गया हैः-

छत्तीसगढ़ राज्य का विस्तार 17° 47′ से 24°06′ उत्तर अक्षांश तथा 80°15′ से 84°51′ पूर्वी देशांतर के मध्य है। राज्य में 4 प्रमुख नदी प्रणालियों क्रमशः महानदी, गोदावरी, नर्मदा और वैनगंगा का जलग्रहण क्षेत्र शामिल है। महानदी, इंद्रावती, हसदेव, शिवनाथ, अरपा, ईब राज्य की प्रमुख नदियाँ हैं। राज्य की जलवायु मुख्यतः सह आर्द्र तथा औसत वार्षिक वर्षा 1200 से 1500 मि.मी. है।
राज्य के वनों को दो प्रमुख वर्गों में विभाजित किया गया है, यथा, उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपातीय वन एवं उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपातीय वन। राज्य की दो प्रमुख वृक्ष प्रजातियाँ साल (शोरिया रोबस्टा) तथा सागौन (टेक्टोना ग्रान्डिस) हैं। इसके अतिरिक्त शीर्ष वितान में बीजा (प्टेरोकार्पस मासूपियम), साजा (टर्मिनेलिया टोमेन्टोसा), धावड़ा (एनागाईसिस लैटिफोलिया), महुआ (मधुका इंडिका), तेन्दू (डायोस्पाईरस मेलैनौजाईलान) प्रजातियाँ हैं। मध्य वितान में आंवला (एम्बिलिका ऑफिसिनेलिश), कर्रा (क्लीस्टेन्थस कोलाइनस) तथा बांस (डेन्ड्रोकैलेमस स्ट्रिक्टस) आदि महत्वपूर्ण प्रजातियाँ हैं। भूतल भाग में नाना प्रकार की वनस्पतियाँ हैं जो पर्यावरणीय संतुलन की दृष्टि से महत्वपूर्ण तो हैं ही, साथ ही वे वन-वासियों के आजीविका का प्रमुख साधन भी हैं।
जैव भौगोलिक दृष्टिकोण से छत्तीसगढ़ राज्य डेकन जैव क्षेत्र में शामिल हैं, तथा मध्य भारत की प्रतिनिधि वन्य प्राणी जैसे शेर (पेन्थरा टिगरीस), तेन्दुआ (पेन्थरा पार्डस), गौर (बॉस गौरस), सांभर (सेरवस यूनिकोलर), चीतल (एक्सेस एक्सेस), नील गाय (बोसेलाफस ट्रेगोकेमेलस) एवं जंगली सुअर (सस स्क्रोफा) से परिपूर्ण है। दुर्लभ वन्य प्राणी जैसे वन भैंसा (बूबैलस बूबैलिस) तथा पहाड़ी मैना (ग्रैकुला इंडिका) इस राज्य की बहुमूल्य धरोहर हैं जिन्हें क्रमशः राज्य पशु एवं राज्य पक्षी घोषित किया गया है। साल वृक्ष को राज्य वृक्ष घोषित किया गया है।

राज्य के लगभग 50 प्रतिशत गांव वनों की सीमा से 5 किलोमीटर की परिधि के अंदर आते हैं, जहां के निवासी मुख्यतः आदिवासी हैं एवं आर्थिक रुप से पिछड़े हैं जो जीविकोपार्जन हेतु मुख्यतः वनों पर निर्भर हैं। इसके अतिरिक्त बड़ी संख्या में गैर आदिवासी, भूमिहीन एंव आर्थिक दृष्टि से पिछड़े समुदाय भी वनों पर आश्रित हैं। वानिकी कार्यों से प्रतिवर्ष लगभग 07 करोड़ मानव दिवस रोजगार का सृजन होता है। वनों से ग्रामीणों को लगभग 2000 करोड़ रुपये का लघु वनोपज एवं अन्य निस्तार सुविधाएं प्राप्त होती हैं। इस प्रकार छत्तीसगढ़ के संवहनीय एवं सर्वांगीण विकास परिदृश्य में वनों का विशिष्ट स्थान है।
8.3 विभाग की प्रमुख योजनाएं / कार्यक्रम –
राज्य के बनों के वैज्ञानिक प्रबंधन हेतु भारत शासन द्वारा 34 वनमंडलों के लिए कार्य आयोजना स्वीकृत है। राज्य के समस्त वनमंडल के वनक्षेत्रों का डिजीटाईजेशन कार्य पूर्ण किया जा चुका है। कार्य आयोजना की अवधि 10 वर्ष की होती है। योजनावार विवरण निम्नानुसार है-
8.3.1 पर्यावरण वानिकी शहरी क्षेत्रों में पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने हेतु इस योजना के अंतर्गत प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में पौधा रोपण, पथ वृक्षारोपण, पर्यावरण पार्क / पिकनिक स्पॉट का निर्माण एवं उनके रखरखाव का कार्य किया जाता है।
8.3.2 बिगड़े वनों का सुधार प्रदेश के लगभग 30 प्रतिशत क्षेत्र का घनत्त्व 0.4 से कम है तथा इन्हें बिगड़े वनों की श्रेणी में रखा गया है। इन क्षेत्रों की उत्पादकता बढ़ाने हेतु बिगड़े वनों के सुधार का कार्य प्रति वर्ष लिया जाता है। इसके अंतर्गत जिन क्षेत्रों में पर्याप्त जड़ भंडार होता है वहां ठूंठ कटाई का कार्य कराया जाकर कापिस शूटस से नये पौधों का निर्माण किया जाता है। कम जड़ भंडार वाले एवं रिक्त स्थानों पर वृक्षारोपण किया जाता है।
8.3.3 बांस वनों का पुनरोद्धार इस योजना के अंतर्गत प्रदेश के बसोड़ों, पानबरेजा परिवारों एवं बांस का काम करने वाले हस्तशिल्प कारीगरों को अधिक मात्रा में अच्छा बांस उपलब्ध कराने के उद्देश्य से वन एवं वनेत्तर क्षेत्रों में बिगड़े बांस वनों का सुधार एवं बांस रोपण कराया जाता है। बिगड़े बांस वनों में गुथे हुए बांस के भिरौं की सफाई कराकर मिट्टी चढ़ाई का कार्य किया जाता है, जिससे अच्छे करले प्राप्त होते हैं एवं बांस वनों की उत्पादकता में वृद्धि होती है।
नदी तट वृक्षारोपण योजना छत्तीसगढ़ के प्रमुख नदियों के तट पर होने वाले भू-क्षरण की रोकथाम कर पारिस्थितिकीय स्थायित्व प्रदान करना।

पथ वृक्षारोपण – राज्य शासन द्वारा सामान्य क्षेत्रों के राष्ट्रीय राजमार्ग, राज्य मार्गों, जिला मुख्य मार्गों तथा ग्रामीण मार्गों के किनारे वृक्षारोपण करने का निर्णय लिया गया है जिसके अंतर्गत पथ वृक्षारोपण एवं रखरखाव कार्य किया जाता है।

8.4 छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगमः छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम मई 2001 में रायपुर क्षेत्र की 4 परियोजना मण्डल को लेकर अस्तित्व में आया। वर्तमान में 9 परियोजना मण्डल हैं जिसमें औद्योगिक परियोजना मण्डल, कोरबा, जगदलपुर एवं रायगढ़ शामिल है।
8.4.1 सागौन, बांस एवं नीलगिरी रोपण वर्ष 2001 से 2024 तक कुल 70066.063 हेक्टेयर क्षेत्र में सागौन, बांस एवं नीलगिरी के रोपण किये गये। 2024 में 1712.822 हे. क्षेत्र में 26,66,563 सागौन पौधों का रोपण किया गया है।
8.4.2 खदानी रोपणः वर्ष 1990 से 2024 तक औद्योगिक क्षेत्रों में 318.11 लाख पौधों का रोपण किया गया है। वर्षा ऋतु वर्ष 2024 में 15.47 लाख पौधों का रोपण किया गया है।
8.4.3 हरियर छ.ग. रोपणः वर्ष 2023 एवं 2024 में हरियर छ.ग. योजना अंतर्गत रायपुर, दुर्ग एवं कोरबा जिलों में 392 हेक्टेयर क्षेत्र में 4.00 लाख पौधों का रोपण किया गया है।
8.4.4 सड़क किनारे वृक्षारोपणः माननीय मुख्यमंत्री जी के निर्देशानुसार पर्यावरण सुधार की दृष्टि से निगम विगत 12 वर्षों दौरान 1071.504 कि.मी. लम्बाई में पथ एवं 2800.60 हेक्टेयर में ब्लाक वृक्षारोपण किया गया है।

छत्तीसगढ़ आदिवासी, स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड
8.5 छत्तीसगढ़ आदिवासी, स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड के मुख्य दायित्व –
1. वनौषधि के विकास हेतु शोध और अनुसंधान कराना।
2. केन्द्रीय औषधि पादप बोर्ड या राज्य शासन द्वारा वित्त पोषिल तथा राज्य के विभिन्न विभागों / संगठनों द्वारा कियान्वित की जा रही औषधि पौधों के विकास की योजनाओं का अनुश्रवण करना।
3. औषधि वनस्पतियों के संरक्षण, संवर्धन एवं विनाश विहीन विदोहन हेतु नीति तथा योजनाएं बनाना एवं कियान्वयन, उपार्जन, भण्डारण, प्रसंस्करण एवं विपणन की योजना बनाना।
4 औषधि पौधों की पहचान एवं संसाधनों का सर्वेक्षण।
5. औषधि वनस्पतियों का प्रसंस्करण (कुटीर उद्योग एवं लघु उद्योगों की स्थापना) तथा वनौषधियों के निर्माण तथा उत्पादों के निर्यात एवं विपणन की योजना बनाना।
6. औषधि पौधों की मांग एवं आपूर्ति का आकलन कराना तथा औषधि पौधों के कृषिकरण को प्रोत्साहित करना।
7 प्रदेश की वनौषधि जैव-विविधता को सुरक्षित रखने हेतु औषधीय पौधों का संरक्षण, संवर्धन, विनाश विहीन विदोहन, प्रसंस्करण एवं औषधीय पौधों के उपयोग तथा जनजातीय एवं स्थानीय स्वास्थ्य परम्परागत ज्ञान को जन सामान्य में जागरूकता के लिए प्रचार-प्रसार करना।
8. औषधि पौधों के विकास के लिये राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से सहयोग प्राप्त करना।
9. जनजातीय एवं स्थानीय परंपरागत उपचारकर्ताओं की पहचान करना, क्षमता विकास हेतु कार्य, सर्वेक्षण एवं प्रशिक्षण का आयोजन कर आदिवासी एवं स्थानीय स्वास्थ्य परंपराओं का अभिलेखीकरण। उपचार केन्द्र की स्थापना / संचालन ।
10. जनजातीय एवं स्थानीय परंपरागत उपचारकर्ताओं तथा समुदाय के औषधि पौधों के ज्ञान एवं उपयोग को पेटेंट कराने एवं पेटेंट उपरांत उत्पादन एवं व्यवसायीकरण हेतु प्रयास।
11. जनजातीय और स्थानीय मानव, पशुओं एवं पादपों के स्वास्थ्य और पोषण संबंधी परंपरा और प्रथाओं के ज्ञान का अभिलेखन कर, उनके बौद्धिक संपदा को लिपिबद्ध का कार्य।
12 जनजातीय एवं स्थानीय परंपरागत उपचारकर्ताओं के उत्थान हेतु नीति एवं योजनायें बनाना।
13. औषधीय पौधों के वैज्ञानिक उपयोग के आधार पर जनजातीय एवं स्थानीय परंपराओं के द्वारा राज्य में सार्वभौमिक स्वास्थ्य (Universal health) की प्राप्ति के लिए प्रयास।
14 राज्य में सर्वेक्षण द्वारा स्थानीय स्वास्थ्य एवं आहार परंपराओं जिसमें स्थानीय समुदाय एवं पारिस्थितिकीय विशिष्ट घरेलु उपचार, आहार विधियों एवं इनके मौसमी उपयोगिता के आधार पर एटलस तैयार करना।
15. जनजातीय एवं स्थानीय स्वास्थ्य परंपरागत ज्ञान, औषधीय पौधों से संबंधित अन्य अनुषांगिक कार्य।

8.6 छत्तीसगढ़ आदिवासी, स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड में प्रचलित योजनाओं की अद्यतन जानकारी:-
1. वर्ष 2024-25 में वृक्षारोपण हेतु स्थल तैयारी एवं नर्सरी कार्य निम्नानुसार है –

1. मॉडल नर्सरी कार्यः बोर्ड द्वारा वर्ष 2023-24 में कृषकों को उच्च गुणवत्ता युक्त औषधीय पौधे प्रदाय किये जाने हेतु लगभग 2 करोड़ औषधीय पौधों की मॉडल नर्सरी की स्थापना की जा रही है।
2. औषधीय पौधों का कृषिकरण वर्ष 2024-25 में औषधीय पौधों की खेती तालिकानुसार है-

1. स्कूल हर्बल गार्डनः वनौषधियों के प्रति जन-सामान्य में जागरूकता हेतु प्रयासों के तहत् स्कूल हर्बल गार्डन योजना के अंतर्गत प्राथमिक स्वास्थ्य में उपयोगी औषधि प्रजातियों के पौधों को प्रदेश के विभिन्न जिलों कांकेर, कोण्डागांव, बिलासपुर, गौरेला पेण्ड्रा मरवाही, कोरबा, जांजगीर-चांपा एवं महासमुंद जिलों के स्कूलों में 200 स्कूल हर्बल गार्डन की स्थापना का कार्य।
2. होम हर्बल गार्डन अंतर्गत निःशुल्क पौधा वित्तरण कार्यः औषधीय पौधों के विकास, औषधीय पौधों से जन-सामान्य के प्राथमिक स्वास्थ्य लाभ एवं उनके महत्व तथा उपयोगिता के बारे में लोगों को जागरूक बनाने हेतु राज्य के विभिन्न वनमण्डलों में होम हर्बल गार्डन योजना अंतर्गत औषधीय पौधों की अस्थायी रोपणी तैयार कर प्रदेश के विभिन्न जिले / वनमण्डल में 15.50,000 औषधीय पौधों का निःशुल्क वितरण का कार्य किया गया।
3. हाइड्रोफोनिक की स्थापना छत्तीसगढ़ आदिवासी, स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड कार्यालय परिसर में हाइड्रोफोनिक की स्थापना कर पौधों को विकसित किया जा रहा है।
4. राष्ट्रीय औषधि पादप बोर्ड अंतर्गत कार्य राष्ट्रीय औषधि पादप बोर्ड के वित्तीय सहयोग से राष्ट्रीय आयुष मिशन योजनांतर्गत स्टीविया, सर्पगंधा, एलोविरा, बच तथा सत्तावर का 20 गांवों में 47 एकड़ में कृषिकरण कर 12.85,000 औषधीय पौधों का वितरण किया गया है तथा न्यूक्लियस सेंटर छत्तीसगढ़ (एन.एम.पी.बी. द्वारा वित्तीय पोषित) अंतर्गत बोर्ड द्वारा अम्बिकापुर में परंपरागत वैद्य सम्मेलन (सरगुजा संभाग / वनवृत्त) सह निःशुल्क औषधीय पौधा वितरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
8.7 लघु वनोपज सहकारी संघ लघु वनोपज सहकारी संघ राज्य, में वनांचलों के निवासियों द्वारा संग्रहित राष्ट्रीयकृत एवं अराष्ट्रीयकृत वनोत्पादों को, उचित मूल्य पर क्रय करता है। जिससे वनों में निवास करने वाले आदिवासियों को जीविकोपार्जन का अत्यंत महत्वपूर्ण आधार प्राप्त होता है जबकि पूर्व में स्थानीय व्यापारियों के द्वारा एकदम कम मूल्य पर अथवा केवल नमक के बदले वनोपजों की खरीदी की जाती रही है। भारत सरकार, जनजातीय कार्य मंत्रालय नई दिल्ली द्वारा वर्ष 2014-15 में न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना लागू की गई है। संघ द्वारा भारत शासन के न्यूनतम समर्थन मूल्य योजनांतर्गत हर्रा एवं सालबीज का संग्रहण वर्ष 2014-15 से, महुआ बीज, इमली, चिरौंजी गुठली, कुसुमी लाख एवं रंगीनी लाख 2015-16 से, कालमेघ, बहेड़ा, नागरमोथा, कुल्लू गोंद, पुवाड़, बेलगुदा, शहद, फूल झाडू वर्ष 2018-19 से, महुआ फूल (सूखा), जामुन बीज (सूखा), कौंच, धवई फूल (सूखा), करंज बीज, बायबडिंग, आंवला बीज रहित वर्ष 2019-20 से एवं भेलवा, इमली बीज, फूल इमली (इमली बीज रहित), बहेड़, कचरिया, गिलोय, नीम बीज, हर्रा कचरिया, वन जीरा, वन तुलसी (बीज) वर्ष 2020-21 से लघु वनोपज का कय किया जा रहा है साथ ही अन्य प्रमुख एवं गौण वनोपजों का सफलतापूर्वक संग्रहण किया जा रहा है। जिनका विवरण संबंधित तालिका में देखा जा सकता है। (एक मानक बोरा 50 हजार तेंदूपत्ता)

8.8 छत्तीसगढ़ राज्य जलवायु परिवर्तन केन्द्र से संबंधित जानकारी
राज्य में जलवायु परिवर्तन विषयक कार्यक्रमों के निर्माण एवं कियान्वयन हेतु छत्तीसगढ़ राज्य जलवायु परिवर्तन केन्द्र की स्थापना वर्ष 2015 में की गई है। वर्तमान में केन्द्र अरण्य भवन, नवा रायपुर, अटल नगर में संचालित है। जलवायु परिवर्तन केन्द्र की वर्ष 2023-2024 की प्रमुख उपलब्धियां निम्नानुसार है:-
छत्तीसगढ़ राज्य जलवायु परिवर्तन केन्द्र द्वारा जलवायु परिवर्तन पर राज्य की कार्य योजना-II (SAPCC-II) का निर्माण किया गया जिसका अनुमोदन पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा किया गया है।
2. छत्तीसगढ़ जलवायु परिवर्तन कॉन्क्लेव 2024 का आयोजन 05-06 मार्च 2024 को छत्तीसगढ़ राज्य जलवायु परिवर्तन केंद्र द्वारा किया गया। जिसमें 15 राज्यों का प्रतिनिधित्व और विभिन्न क्षेत्रों के 200 से अधिक प्रतिभागी शामिल हुए ।
3. छत्तीसगढ़ जलवायु परिवर्तन कॉन्क्लेव 2024 के दौरान SAPCC-II का विमोचन श्री विष्णुदेव साय, माननीय मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ शासन द्वारा किया गया।
4. छत्तीसगढ़ राज्य जलवायु परिवर्तन केन्द्र, द्वारा जलवायु परिवर्तन पर राज्य की कार्य योजना-II के क्रियान्वयन की निगरानी हेतु एक ऑनलाइन डैशबोर्ड का निर्माण किया गया है, जिसका विमोचन छत्तीसगढ़ जलवायु परिवर्तन कॉन्क्लेव 2024 के दौरान श्री विष्णुदेव साय, माननीय मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़ शासन द्वारा किया गया।
5. छत्तीसगढ़ राज्य जलवायु परिवर्तन केंद्र, अरण्य भवन, नवा रायपुर, छत्तीसगढ़ में जलवायु परिवर्तन पर आधारित पुस्तकालय स्थापित किया गया है।
6. जलवायु परिवर्तन विषयक ज्ञान के प्रचार प्रसार हेतु राज्य स्तरीय क्लाईमेट स्टूडियो का निर्माण किया जा रहा है।
7. त्रौमासिक समाचार पत्रों का प्रकाशन नियमित अंतराल पर किया जा रहा है, अब तक कुल 25 अंक प्रकाशित हो चुके हैं।
8. छत्तीसगढ़ राज्य जलवायु परिवर्तन केन्द्र द्वारा प्रतिभागियों के क्षमता विकास हेतु विभिन्न प्रशिक्षणों / कार्याशालाओं / लेक्चर आदि का आयोजन किया जाता है। आज दिनांक की स्थिति में 4000 से अधिक लाभार्थियों को लाभान्वित किया जा चुका है।

राज्य में ज्ञान तंत्र को मजबूत करने हेतु जलवायु परिवर्तन संबंधित विषयों पर 18 अध्ययन किये जा चुके है, जिनकी रिपोर्ट कार्यालयीन वेबसाइट पर उपलब्ध है।


See also

References


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